Thursday, February 26, 2009

बराक ओबामा की राजनीति

अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के १०० दिन पूरे कर चुके बराक ओबामा ने कल यानि २५ फरबरी को अमेरिकन कांग्रेस को पहली बार संबोधित करते हुए कुछ ऐसा किया जो संभवतः अमेरिकी इतिहास में पहली बार हुआ है । बराक ओबामा कांग्रेस से अमेरिका को आर्थिक मंदी से उबारने के लिए प्रस्तुत अपने ७५० बिलियन डॉलर के पैकेज को पास करने की अपील करते हुए एक ऐसा कारनामा किया जो बराक ओबामा की अपनी ही किस्म की नई राजनीति की शुरुआत का संकेत है ।

जिन लोगों ने कल टेलीविजन पर बराक ओबामा का भाषण देखा है, उन्होंने उनकी पत्नी मिशेल ओबामा के पास में बैठी उस अश्वेत लड़की को भी देखा होगा जो बड़े ही शांत भाव से ओबामा का भाषण सुनते हुए अमेरिकन कांग्रेस की कार्यवाही भी देख रही थी । दरअसल ये अमेरिका के सुदूर प्रान्त साउथ कैरोलिना के एक गाँव की लड़की थी, जिसने अमेरिकन कांग्रेस को एक पत्र लिखा था । उस पत्र में उसने लिखा था कि वो जिस स्कूल में पढ़ती है, उसकी छत बरसात में टपकती है, उसकी दीवारों से पेंट झड़ गया है और उसके पास से निकलने वाली ट्रेनों से इतना शोर होता है, कि वो पढ़ नहीं पाती है । इतना ही नहीं उसने यह भी लिखा कि ऐसी स्थिति में उसके पास स्कूल छोड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है । यहाँ तक कि उस पत्र पर आने वाले डाक खर्च के पैसे भी उसने अपने स्कूल की प्रिंसिपल से लिए थे ।

ओबामा ने न केवल उस लड़की को वहां से वाशिंगटन बुलाकर अमेरिकन कांग्रेस में बैठाया, बल्कि उसके जरिये एक संदेश दिया कि हर अमेरिकी को कम से कम १० वी पास करना होगा और अगर इसके लिए उनके पास पैसे की कमी है तो सरकार उसे पूरी पढ़ाई के लिए २५००० डॉलर की सहायता देगी । ओबामा ने यह भी कहा कि दुनिया का कोई भी स्कूल माता-पिता की जगह नहीं ले सकता, इसलिए अमेरिका के अभिभावकों को बच्चों को टेलीविजन देखने से रोकना होगा, वीडियो गेम्स खेलना बंद कराना होगा और बच्चों को पढने के लिए प्रेरित करना होगा । कुछ समय पहले राहुल गाँधी ने संसद में अपने भाषण में कलावती का जिक्र करते हुए भारत के आम आदमी को भारत-अमेरिका परमाणु संधि से होने वाले फायदे की बात कही थी, लेकिन यहीं भारतीय नेताओं की कोरी लफ्फाजी और बराक ओबामा की संवेदनशीलता में अन्तर का पता चलता है । क्या आज कोई आम आदमी इस बात की अपेक्षा कर सकता है कि उसके द्वारा संसद को संबोधित पत्र को उतनी ही संवेदनशीलता के साथ सरकार द्वारा लिया जायेगा, जितनी आशा और व्यवस्था में विश्वास के साथ उसने वो पत्र लिखा है ? दरअसल हमारे नेताओं ने बीते ६० वर्षों में व्यवस्था को इतना कमजोर बना दिया है, कि उसमे आम आदमी के नाम पर योजनायें तो बनायी जाती हैं और उन पर करोड़ों रुपये का कागजी खर्च भी दिखाया जाता है । बेशर्मी की हद तो तब हो जाती है, जब फर्जी आंकडों के जरिये देश को यह बताने की पुरजोर कोशिश भी की जाती है, कि देश हर साल बहुत तरक्की कर रहा है । शायद ऐसे में आर.के.लक्ष्मण का 'आम आदमी' का कार्टून ही प्यारा लगता है ।

हमारे नेता अपने आप को आम आदमी का कितना भी बड़ा हमदर्द साबित करने की होड़ में शामिल क्यों न हों, लेकिन संस्कृति और सभ्यता के नाम पर अमेरिका को पानी पी-पीकर कोसने की जगह ओबामा की राजनीति से कुछ सीखने का साहस जुटा पायेंगे ? यह तो बराक ओबामा की राजनीति की केवल शुरुआत है, आगे-आगे देखिये होता है क्या !

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